Wednesday, September 11, 2019

Swami Vivekananda's Chicago speech of 1893



Sisters and Brothers of America,



It fills my heart with joy unspeakable to rise in response to the warm and cordial welcome which you have given us. I thank you in the name of the most ancient order of monks in the world; I thank you in the name of the mother of religions, and I thank you in the name of millions and millions of Hindu people of all classes and sects.


My thanks, also, to some of the speakers on this platform who, referring to the delegates from the Orient, have told you that these men from far-off nations may well claim the honor of bearing to different lands the idea of toleration. I am proud to belong to a religion which has taught the world both tolerance and universal acceptance. We believe not only in universal toleration, but we accept all religions as true. I am proud to belong to a nation which has sheltered the persecuted and the refugees of all religions and all nations of the earth. I am proud to tell you that we have gathered in our bosom the purest remnant of the Israelites, who came to Southern India and took refuge with us in the very year in which their holy temple was shattered to pieces by Roman tyranny. I am proud to belong to the religion which has sheltered and is still fostering the remnant of the grand Zoroastrian nation. I will quote to you, brethren, a few lines from a hymn which I remember to have repeated from my earliest boyhood, which is every day repeated by millions of human beings: "As the different streams having their sources in different paths which men take through different tendencies, various though they appear, crooked or straight, all lead to Thee."


The present convention, which is one of the most august assemblies ever held, is in itself a vindication, a declaration to the world of the wonderful doctrine preached in the Gita: "Whosoever comes to Me, through whatsoever form, I reach him; all men are struggling through paths which in the end lead to me." Sectarianism, bigotry, and its horrible descendant, fanaticism, have long possessed this beautiful earth. They have filled the earth with violence, drenched it often and often with human blood, destroyed civilization and sent whole nations to despair. Had it not been for these horrible demons, human society would be far more advanced than it is now. But their time is come; and I fervently hope that the bell that tolled this morning in honor of this convention may be the death-knell of all fanaticism, of all persecutions with the sword or with the pen, and of all uncharitable feelings between persons wending their way to the same goal.


Address at the final session


Chicago, September 27, 1893


The World's Parliament of Religions has become an accomplished fact, and the merciful Father has helped those who laboured to bring it into existence, and crowned with success their most unselfish labour.


My thanks to those noble souls whose large hearts and love of truth first dreamed this wonderful dream and then realized it.


My thanks to the shower of liberal sentiments that has overflowed this platform. My thanks to this enlightened audience for their uniform kindness to me and for their appreciation of every thought that tends to smooth the friction of religions. A few jarring notes were heard from time to time in this harmony. My special thanks to them, for they have, by their striking contrast, made general harmony the sweeter.


Much has been said of the common ground of religious unity. I am not going just now to venture my own theory. But if any one here hopes that this unity will come by the triumph of any one of the religions and the destruction of the others, to him I say, "Brother, yours is an impossible hope." Do I wish that the Christian would become Hindu? God forbid. Do I wish that the Hindu or Buddhist would become Christian? God forbid.


The seed is put in the ground, and earth and air and water are placed around it. Does the seed become the earth, or the air, or the water? No. It becomes a plant. It develops after the law of its own growth, assimilates the air, the earth, and the water, converts them into plant substance, and grows into a plant.


Similar is the case with religion. The Christian is not to become a Hindu or a Buddhist, nor a Hindu or a Buddhist to become a Christian. But each must assimilate the spirit of the others and yet preserve his individuality and grow according to his own law of growth.


If the Parliament of Religions has shown anything to the world, it is this: It has proved to the world that holiness, purity and charity are not the exclusive possessions of any church in the world, and that every system has produced men and women of the most exalted character. In the face of this evidence, if anybody dreams of the exclusive survival of his own religion and the destruction of the others, I pity him from the bottom of my heart, and point out to him that upon the banner of every religion will soon be written in spite of resistance: "Help and not fight," "Assimilation and not Destruction," "Harmony and Peace and not Dissension."






https://belurmath.org/swami-vivekananda-speeches-at-the-parliament-of-religions-chicago-1893/






विश्व धर्म सम्मेलन में दिया गया संदेश

शिकागो, 11 सितंबर 1893


अमेरिका के बहनों और भाइयों…


आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय बेहद प्रसन्नता से भर गया है. मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूँ. मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद कहूँगा और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका कृतज्ञता व्यक्त करता हूं.


मेरा धन्यवाद उन कुछ वक्ताओं के लिये भी है जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूरपूरब के देशों से फैला है. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक ग्रहण करने का पाठ पढ़ाया है.


हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में ही स्वीकार करते हैं. मुझे बेहद गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूँ, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के अस्वस्थ और अत्याचारित लोगों को शरण दी है.


मुझे यह बताते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजराइलियों की पवित्र स्मृति याँ संभालकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर नष्ट कर दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी.


मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ , जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें प्यार से पाल-पोस रहा है. भाइयों, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहूँगा जिसे मैंने अपने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है.


जिस तरह बिलकुल भिन्न स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियाँ अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है. वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं.


वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र समारोहों में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है – जो भी मुझ तक आता है, चाहे फिर वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुँचते हैं.


सांप्रदायिकताएँ, धर्माधता और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी बार ही यह भूमि खून से लाल हुई है. कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर ये भयानक दैत्य नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है.


मुझे पूरी आशा है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगे.


स्वामी विवेकानंद का अंतिम सेशन में दिया गया संदेश


उन सभी महान आत्माओ का मै शुक्रियादा करता हु जिनका बड़ा ह्रदय हो और जिनमे प्यार की सच्चाई हो और जिन्होंने प्रभुत्व की सच्चाई का अनुभव कीया हो. उदार एवं भावुकता को दिखाने वालो का भी मै शुक्रियादा करना चाहता हु. मै उन सभी श्रोताओ का भी शुक्रियादा करना चाहता हु जिन्होंने शांति पूर्वक हमारे धार्मिक विचारो को सुना और अपनी सहमति दर्शायी.


इस सम्मेलन की सभी मधुर बाते मुझे समय-समय पर याद आती रहेंगी. उन सभी का मै विशेष शुक्रियादा करना चाहता हु जिन्होंने अपनी उपस्थिति से मेरे विचारो को और भी महान बनाया.


बहोत सी बाते यहाँ धार्मिक एकता को लेकर ही कही गयी थी. लेकीन मै यहाँ स्वयं के भाषण को साहसिक बताने के लिये नही आया हु. लेकीन यहाँ यदि किसी को यह आशा है की यह एकता किसी के लिये या किसी एक धर्म के लिये सफलता बनकर आएँगी और दूसरे के लिए विनाश बनकर आएँगी, तो मै उन्हेंसे कहना चाहता हु की, “भाइयो, आपकी आशा बिल्कुल असंभव है.”


क्या मै धार्मिक एकता में किसी क्रिस्चियन को हिन्दू बनने के लिए कह रहा हु?


भगवान ऐसा करने से हमेशा मुझे रोकेंगे.


क्या मै किसी हिन्दू या बुद्ध को क्रिस्चियन बनने के लिये कह रहा हु? निश्चित ही भगवान ऐसा नही होने देंगे. बीज हमेशा जमीन के निचे ही बोये जाते है और धरती और हवा और पानी उसी के आसपास होते है. तो क्या वह बीज धरती, हवा और पानी बन जाता है? नही ना, बल्कि वह एक पौधा बन जाता है. वह अपने ही नियमो के तहत बढ़ता जाता है. साधारण तौर पर धरती, हवा और पानी भी उस बीज में मिल जाते है और एक पौधे के रूप में जीवित हो जाते है.


और ऐसा ही धर्म के विषय में भी होता है. क्रिस्चियन कभी भी हिन्दू नही बनेगा और एक बुद्धिस्ट और हिन्दू कभी क्रिस्चियन नही बनेंगे. लेकिन धार्मिक एकता के समय हमें विकास के नियम पर चलते समय एक दुसरे को समझकर चलते हुए विकास करने की जरुरत है.


यदि विश्व धर्म सम्मेलन दुनिया को यदि कुछ दिखा सकता है तो वह यह होंगा- धर्मो की पवित्रता, शुद्धता और पुण्यता.


क्योकि धर्मो से ही इंसान के चरित्र का निर्माण होता है, यदि धार्मिक एकता के समय भी कोई यह सोचता है की उसी के धर्म का विस्तार हो और दुसरे धर्मो का विनाश हो तो ऐसे लोगो के लिये मुझे दिल से लज्जा महसुस होती है. मेरे अनुसार सभी धर्मो के धर्मग्रंथो पर एक ही वाक्य लिखा होना चाहिये:





” मदद करे और लडे नही” “एक दूजे का साथ दे, ना की अलग करे” “शांति और करुणा से रहे, ना की हिंसा करे”.

Tuesday, September 10, 2019

Panchang

कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः 
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः 
Time is very powerful. It is the ultimately powerful. It digests each element. It is always awake. Nobody can break time.  We give importance to time because it has a direct impact to us, to the planet as well as to the universe or cosmos. The way modern science is measuring time is not the accurate way as we are just following the linearly incremental way. Kala is not just a time, ever we say Yamaraj as Kala or somany ways it is understood in our philosophy. The cosmos is a complex phenomenon which do follow some principle which are unwritten. The Kala makes that unwritten rule applied in each and every moment. As a result we are here.

There are so many external forces who has a direct impact to our life / to this planet for that matter. In fact, if we try to understand, every tiny thing around us has an impact to us. It depends on how stable/influential we are or that object or person is. Based on the power the impact is felt. Planet is very vast hence we they have influence and vibration. It is said that on the Fool Moon day or New Moon day whoever have some instability in mind, they go more instable because of the influence. It depends on who is more influential.  In the same ways there are so many planets which has impact on earth or to be specific to us. The major effect is that of Moon and that of Sun. There after other planets. Then the Nakshyatra(Stars).

We are part of certain process of evolution. When we are talking about Human evolution, it is not really a human evolution but evolution of the entire cosmos. When Solar system is fit is eligible to have human being in this shape then we started appearing. We are in this shape because of the system.

Panchang is an astrological diary which is mainly used to see auspicious dates and timing of marriage, ceremonies, calculate auspicious timings before traveling, forecasting weather, before going for an interview, or starting of any new business.
भारत मे पंचांग का अपना विशिष्ट स्थान है।  भारत व्रत, त्यौहार, उत्सव, मांगलिक कार्येा का देश है।  ये यहा की संस्कृति मे रचे-बसे है। पंचांग का मूल उद्देश्य विभिन्न व्रत, त्यौहार, उत्सव, मांगलिक कार्य की जांच करना है।
हिन्दू प्रणाली से पंचांग के विभिन्न तत्वो के संयोजन से शुभ और अशुभ क्षण (योग) का गठन करना है। इसके आलावा सप्ताह के दिन, तिथि, योग, नक्षत्र, करण आदि को विशिष्ट गतिविधियो के लिए निर्धारित किये  गये   उनके उतार-चढाव का ज्ञान है। एक शुभ समय निर्धारित करने के लिए पंचांग शुद्धि मौलिक है।

Indian Calender/ Hindu calender/ Vikrama Samvatsara are all based on Panchangam (Pancha+angam)


The complete Indian calendars contain five Angas or parts of information:
1.      Din (vaar) or Day of the Week , 2. Tithi or the Lunar day   3. Nakshatra or the Constellation,  4. Yog,  5. Karan

lunar day (tithi),  (https://en.wikipedia.org/wiki/Tithi)

Ø  Tithi & Paksha is the day according to the Hindu lunar Calendar.
Ø  The Hindu lunar calendar consists of a dark and a bright fortnight also called paksha.
Ø  The sidereal month is the time it takes to make one complete orbit around Earth with respect to the fixed stars. It is about 27.32 days
Ø  When the moon completes 12 degrees of its movement on the Sun, it is called a Tithi or Hindu lunar day. There are 30 tithis(Pratipada, dvitiya, Tritiya, Chaturthi…chaturdasi, Purnima/Amavasya) in a lunar month.
Ø  It should be noted that starting and ending of a Tithi depends upon the degree of the Moon from that of the Sun. Therefore, a Tithi can start or end at any time in a day.
Ø  Tithis are classified into five types - Nanda Tithi, Bhadra Tithi, , Jaya Tithi, Rikta Tithi, Poorna Tithi

solar day (diwas), Din (vaar) or Day of the Week:

               Rabivara(Sun), somabar(Moon), mangalavara(Mars), Budhavara(Mercury), Guruvara(Jupitor), Sukravara(Venus), Sanivaar(Saturn)

asterism (naksatra), or the Constellation:

Ø  27 Nakshatras considered in Vedic Astrology, Each one of them has 13 degree and 20 minutes of the zodiac.
Ø  Nakshatra can be known with help of degrees of Moon in a particular sign at the time of birth.
Ø  Nakshatra also indicate Yoni(Animal symbol), Gan(3 dana) and Nadi of an individual
Ø  Yoni: - There are 14 Yonis (animal symbols) in Vedic astrology assigned to nakshatras
Ø  Gana: There are three Ganas - 1. Deva: Divine, 2. Manuj: Human, 3. Rakshas: Demon
Ø  Nadis - 1. Adi : Vata (wind), 2. Madhya: Pitta (bile), 3. Antya: Kapha or Shleshma (phlegm)

planetary joining (yoga):

Ø  Yoga is an angle of earth to that is Moon and Sun in a day to day basis. The first yog (Viskumbh) ends when the angle  is 13°20'.
Ø  There are 27 Yoga: Vishkumbha, Saubhagya, Sukarama, Ganda…. Vaidhriti
Ø  All these Yoga are linked to each Nakshyatra
Ø  There are some auspicious Yoga and some are inauspicious.

astronomical period (karanam)

Ø  Half of Tithi is called `Karna'. A Karna is completed when the Nirayana longitude of the Moon gains every 6° on that of Sun.
Ø  There are 11 karnas in total.
Ø  Four of them occur just once a month and are called the Fixed Karanas: Kintughna, Chatushpada, Sakuni and Naga
Ø  seven are movable Karanas. They follow one another in a fixed rotation: Bava, Balava, Kaulava, Taitila, Gara, Vanija and Vishti.
Ø  Each of the Karanas is said to have its own influence and interpretation.






Ninad or Udghosh